भारत की पारंपरिक कथाओं में एक कहानी है। एक पुराने हिंदू संत नदी के किनारे बैठकर चुपचाप अपना मंत्र जप रहे थे।
वहीं पास में एक बिच्छू पेड़ से गिरकर नदी में जा पड़ा। संत ने उसे पानी में संघर्ष करते हुए देखा और झुककर उसे बाहर निकाल लिया। उन्होंने बिच्छू को फिर से पेड़ पर रख दिया, लेकिन ऐसा करते समय बिच्छू ने उनके हाथ पर डंक मार दिया।
संत ने डंक की परवाह नहीं की और अपने मंत्र का जाप जारी रखा।
थोड़ी देर बाद, वही बिच्छू फिर से पानी में गिर गया। संत ने फिर से उसे बाहर निकाला और पेड़ पर रख दिया। और इस बार भी बिच्छू ने उन्हें डंक मारा।
यह घटना कई बार दोहराई गई। हर बार संत ने बिच्छू को बचाया और हर बार उन्हें डंक मिला।
इतना सब कुछ देखकर एक ग्रामीण, जो वहां पानी लेने आया था, अपनी जिज्ञासा और खीझ रोक नहीं पाया।
उसने संत से कहा, “स्वामीजी, मैंने आपको उस मूर्ख बिच्छू को कई बार बचाते देखा है और हर बार उसने आपको डंक मारा। आप उस दुष्ट को क्यों नहीं छोड़ देते?”
संत ने उत्तर दिया, “मित्र, वह बेचारा क्या करे? डंक मारना तो उसकी प्रकृति है।”
ग्रामीण ने उत्तर दिया, “सही कहा, लेकिन यह जानते हुए भी आप उससे क्यों नहीं बचते?”
संत मुस्कुराते हुए बोले, “अरे भाई, तुम देखो, मैं भी क्या करूं? मैं तो इंसान हूं, और बचाना मेरी प्रकृति है।”