एक दिन एक साधु अपने सभी शिष्यों, अनुयायियों और भक्तों को एक खेत में ले गए। यही उनका तरीका था उन्हें गहरी बातें सिखाने का – दुनिया के उदाहरणों के माध्यम से। वह सैद्धांतिक बातें नहीं करते थे, बल्कि बहुत व्यावहारिक व्यक्ति थे।
शिष्य सोच रहे थे, “खेत में जाने का क्या उद्देश्य हो सकता है… और वह यहां ही यह बात क्यों नहीं कह सकते?”
लेकिन जब वे खेत पहुंचे, तो समझ गए कि वे गलत थे और साधु सही।
वहां किसान लगभग पागल व्यक्ति जैसा लग रहा था। वह खेत में कुआं खोद रहा था – और उसने पहले ही आठ अधूरे कुएं खोद दिए थे।
वह कुछ फीट खोदता और फिर पाता कि पानी नहीं है। फिर वह दूसरा कुआं खोदना शुरू कर देता… और यही कहानी चलती रहती। उसने पूरा खेत खराब कर दिया था और अब तक उसे पानी नहीं मिला था।
साधु ने अपने शिष्यों से कहा, “क्या तुम कुछ समझ सकते हो? अगर इस आदमी ने संपूर्णता से अपनी पूरी ऊर्जा एक ही कुएं पर लगाई होती, तो वह बहुत पहले ही गहरे जल स्रोत तक पहुंच गया होता।
लेकिन जिस तरह से यह चल रहा है, वह पूरे खेत को बर्बाद कर देगा और कभी भी एक भी कुआं नहीं बना पाएगा। इतनी मेहनत से वह केवल अपनी ही जमीन को बर्बाद कर रहा है और खुद को और अधिक निराश और हताश कर रहा है। वह सोच रहा है कि उसने जैसे कोई रेगिस्तान खरीद लिया है। यह रेगिस्तान नहीं है, लेकिन पानी के स्रोत तक पहुंचने के लिए गहराई में जाना पड़ता है।”
साधु ने अपने शिष्यों की ओर मुड़कर उनसे पूछा, “क्या तुम इस पागल किसान का अनुसरण करोगे? कभी एक रास्ता, कभी दूसरा रास्ता, कभी किसी को सुनना, कभी किसी और को सुनना… तुम बहुत ज्ञान इकट्ठा कर लोगे, लेकिन वह सारा ज्ञान बेकार है, क्योंकि वह तुम्हें उस आत्मज्ञान तक नहीं ले जाएगा जिसकी तुम तलाश कर रहे हो। वह तुम्हें उस शाश्वत जीवन के जल स्रोत तक नहीं पहुंचाएगा।”