एक बार एक गौरैया अपने घोंसले के लिए आश्रय खोज रही थी ताकि वह अंडे दे सके। उसे दो पेड़ दिखाई दिए। उसने पहले पेड़ के पास जाकर आश्रय मांगा, लेकिन उसने मना कर दिया। गौरैया ने उससे बार-बार निवेदन किया कि वह दूर दक्षिण से आई है और उसे अंडे देने के लिए एक सुरक्षित जगह की जरूरत है। अगर उसे कोई जगह नहीं मिली, तो उसके बच्चे परेशानी में पड़ जाएंगे। लेकिन वह पेड़ हर बार मना करता रहा।
आखिरकार, गौरैया को गुस्सा आ गया। उसने कहा, “तुमने प्रकृति और एक असहाय माँ का अपमान किया है। तुम्हारा अंत दर्दनाक होगा।”
इसके बाद गौरैया दूसरे पेड़ के पास गई, और उसने उसे आश्रय दे दिया। उसने वहाँ अपना घोंसला बनाया और अंडे दिए। एक महीने बाद बारिश का मौसम आया।
बारिश इतनी तेज़ थी कि पहला पेड़, जिसने आश्रय देने से मना कर दिया था, गिर गया और बाढ़ में बह गया। यह देखकर गौरैया ने उस पेड़ का मजाक उड़ाते हुए कहा, “यह तुम्हारा कर्म है, क्योंकि तुमने मुझे आश्रय देने से मना कर दिया।”
इस पर पेड़ ने उत्तर दिया, “मुझे पता था कि मैं इस बारिश के मौसम में बच नहीं पाऊँगा, और इसलिए मैंने तुम्हें आश्रय देने से मना कर दिया।”