The Bamboo’s Surrender | बाँस का समर्पण

हर रोज़ कृष्ण बगीचे में जाते थे और सभी पौधों से कहते थे, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ।”

पौधे बहुत खुश होते और जवाब देते, “कृष्ण, हम भी आपसे प्यार करते हैं।”

एक दिन कृष्ण बगीचे में बहुत घबराए हुए तेज़ी से आए।

वह बाँस के पौधे के पास गए, और बाँस ने पूछा, “कृष्ण, क्या हुआ?”

कृष्ण ने कहा, “मुझे तुमसे कुछ पूछना है, लेकिन यह बहुत कठिन है।”

बाँस ने कहा, “बताइए, अगर मैं आपकी मदद कर सकता हूँ तो मैं ज़रूर दूँगा।”

कृष्ण ने कहा, “मुझे तुम्हारा जीवन चाहिए। मुझे तुम्हें काटना होगा।”

बाँस ने कुछ देर सोचा और फिर पूछा, “क्या कोई और रास्ता नहीं है?”

कृष्ण ने कहा, “नहीं, कोई और रास्ता नहीं है।”

तब बाँस ने कहा, “ठीक है,” और खुद को समर्पित कर दिया।

कृष्ण ने बाँस को काटा और उसमें छेद किए। हर बार जब कृष्ण ने छेद किया, बाँस दर्द से रो रहा था।

कृष्ण ने बाँस से एक सुंदर बांसुरी बनाई। वह बांसुरी हमेशा कृष्ण के साथ रहती थी। 24 घंटे, हर समय वह कृष्ण के पास होती थी। यहां तक कि गोपियाँ भी उस बांसुरी से ईर्ष्या करती थीं।

उन्होंने कहा, “देखो, कृष्ण हमारे प्रभु हैं, लेकिन हमें उनके साथ केवल कुछ समय बिताने का अवसर मिलता है। लेकिन वह तुम्हारे साथ सोते हैं, तुम्हारे साथ जागते हैं, हर समय तुम उनके साथ होती हो।”

गोपियों ने बाँस से पूछा, “हमें अपना रहस्य बताओ। ऐसा क्या है जो भगवान तुम्हें इतना प्रिय मानते हैं?”

बाँस ने कहा, “रहस्य यह है कि मैंने खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया। और उन्होंने मेरे लिए जो सही था, वह किया। इस प्रक्रिया में मुझे बहुत दर्द सहना पड़ा।

भगवान मेरे साथ जो चाहते हैं, जब चाहते हैं और जैसे चाहते हैं, वही करते हैं। मैं सिर्फ उनका साधन बन गया हूँ।”

यह है शरणागति: जहाँ आप पूरी तरह से भगवान को समर्पित कर दें, कि वे जो चाहें, जब चाहें और जैसे चाहें आपके साथ कर सकें।

उन पर पूरा भरोसा करें और विश्वास रखें। और हमेशा जानें… कि आप उनके हाथों में हैं। तो गलत हो ही नहीं सकता।

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